Friday, June 11, 2010

क्या सिर्फ अर्जुन सिंह ने किए थे सारे फैसले? -आलोक तोमर


भोपाल के हजारों अभागे गैस पीड़ितों का कानूनी श्राद्ध पूरा हो पाता उसके पहले राजनैतिक कपाल क्रियाएं शुरू हो गई है। अब यह सबको मालूम है कि अर्जुन सिंह ने यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन को सरकारी मेहमान की तरह बाइज्जत गिरफ्तार कर के तीन घंटे में जमानत दे कर अपने जहाज से दिल्ली विदा कर दिया था। यह भी लगभग जाहिर है कि अर्जुन सिंह हो या कोई भी दूसरा कांग्रेसी मुख्यमंत्री, इतना बड़ा फैसला सिर्फ अपने दम पर नहीं कर सकता।

खबर आई है कि अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह की चुरहट लॉटरी न्यास में यूनियन कार्बाइड ने तीन करोड़ रुपए का दान दिया था। सबसे पहले तो यह कि अर्जुन सिंह अपने किए की वजह से कभी आफत में नहीं पड़े। पता नहीं राजनैतिक साजिश थी या कुछ और उनके पिता को दिल्ली में रिश्वत लेने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया था और जेल में ही उनका निधन हुआ। चुरहट लॉटरी बेटे सिंह का कारनामा था जिसमें एक सरकारी अधिकारी निगम साहब का दिमाग भी चला था और बताया गया कि इस लॉटरी में सब कुछ फर्जी था। आपस में ही इनाम बांट लिए गए और फिर न्यास धरा रह गया।

चुरहट को ले कर अर्जुन सिंह बहुत लंबे समय तक आफत में फंसे रहे थे। एक बार तो उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से प्रतिकूल टिप्पणी आने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था। मगर अदालत की ही दूसरी टिप्पणी के बाद वे फिर अपने पद पर विराज गए। इसके बाद आज अर्जुन सिंह को कांग्रेस के हाशिए पर धकेला गया है तो इसके पीछे उनकी पुत्री बीना सिंह की राजनैतिक महात्वकांक्षा है कि वे पिछले लोकसभा चुनाव में सतना से कांग्रेसी उम्मीदवार के खिलाफ लड़ गई। कांग्रेस का उम्मीदवार हार गया।

मगर बात भोपाल हादसे की हो रही है। वारेन एंडरसन जब दिल्ली आया तो भी भारत सरकार का अपराधी था। उसे गिरफ्तार करने की बजाय होटल अशोक में प्रेसीडेंशियल सुईट में रखा गया जिसका किराया 26 साल पहले भी 12 हजार रुपए रोज होता था। राजीव गांधी ने फोन पर एंडरसन से बात भी की। मानना पड़ेगा कि राजीव गांधी ने एंडरसन को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर दिया था। उन्होंने कहा था कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड संयंत्र की रचना में कुछ तकनीकी गड़बड़िया थी जिसकी वजह से यह हादसा हुआ। एंडरसन ने तो सरेआम बयान दे कर कह दिया था कि भारतीय कर्मचारियों की गलती की वजह से यह हादसा हुआ है। इसके बाद एंडरसन किसकी मेहरबानी से वापस जाने में कामयाब हुआ, यह सवाल अब भी बाकी है।

आप गौर करें तो पाएंगे कि जो आधी अधूरी सजा भोपाल की अदालत ने दी हैं वह सब भारतीय अभियुक्तों के खिलाफ हैं। केशव महिंद्रा जरूर यूनियन कार्बाइड इंडिया के चेयरमैन थे मगर 2002 में भारतीय उद्योग जगत की निस्वार्थ सेवा करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित करने का फैसला किया था। खुद केशव महिंद्रा ने यह सम्मान वापस कर दिया था और कहा था कि जब तक मैं भोपाल के मामले में कलंक मुक्त नहीं हो जाता तब तक मुझे यह सम्मान लेने का कोई हक नहीं हैं। क्या वाजपेयी सरकार को भी पता नहीं था कि केशव महिंद्रा इतने बडे़ नरसंहार में मुख्य अभियुक्त हैं?

अब अर्जुन सिंह पर लौट कर आइए। उनके पुराने राजनैतिक शिष्य और कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ महासचिव दिग्विजय सिंह जो खुद भी मध्य प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, कह रहे हैं कि अमेरिकी दबाव में केंद्र सरकार को यह फैसला लेना पड़ा होगा। जाहिर है कि वे राजीव गांधी को अनाड़ी और दबाव के सामने झुक जाने वाला मानते हैं। राजीव गांधी की सरकार में आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा अरुण नेहरू के पास था और हर सरकारी फैसले में अरुण सिंह की बड़ी भूमिका होती थी, ये दोनों हमारे बीच मौजूद हैं और इनसे सवाल कोई नहीं कर रहा।

कायदे से अर्जुन सिंह के पास दिल्ली से नरसिंह राव या जिस किसी का फोन एंडरसन को छोड़ने और दिल्ली भेजने के लिए आया था, उसे खुद अर्जुन सिंह को समझाना चाहिए था कि मामला कितना गंभीर हैं और इसके मुख्य अभियुक्त को यों ही छोड़ देने के कितने भयानक परिणाम निकलेंगे? मध्य प्रदेश के सरकारी जहाज के पायलट तक कह रहे हैं कि उन्हें अगर पता होता कि उनके जहाज में एंडरसन को दिल्ली छोड़ा जाना है तो वे नौकरी छोड़ देते मगर ऐसा पाप नहीं करते।

सत्यव्रत चतुर्वेदी गलत समय पर गलत बात बोलने के लिए कुख्यात हैं और उन्हांनें तो सीधे कह दिया कि दिल्ली से कोई संदेश नहीं गया और जो फैसला हुआ वह अर्जुन सिंह ने ही किया था। दिग्विजय सिंह जो कह रहे हैं वह असल में राजीव गांधी पर सारी जिम्मेदारी मढ़ने जैसा आरोप है। मगर दिग्विजय सिंह भी तर्क की सीमा के बाहर नहीं जा रहे हैं। वे कहते है कि मैं उस समय भोपाल में नहीं था इसलिए मुझे पूरी जानकारी नहीं हैं मगर इस तर्क में भी एक पेंच है। दस साल तक मुख्ममंत्री रहने के बाद अगर कोई यह दावा करे कि उसे राज्य के ही नहीं, विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के तथ्य नहीं पता तो यह बात आसानी से हजम होने वाली नहीं है।

भारत के एटॉर्नी जनरल की हैसियत से सोली सोराबजी ने राय दी थी कि धारा 304 के तहत एंडरसन के प्रत्यर्पण के पूरे आधार मौजूद हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को जिसमें राम जेठमलानी जैसे महान वकील कानून मंत्री थे, इस मामले में राय लेने के लिए अमेरिका की ही एक कानूनी कंपनी मिली। इस कंपनी ने मोटी फीस ली और कह दिया कि जो आधार बताए गए हैं उन्हें देखते हुए तो एंडरसन का प्रत्यर्पण नहीं हो सकता। इस राय का मूल तत्व यह था कि एंडरसन अमेरिका में बैठे थे और भोपाल में दिन प्रतिदिन क्या हो रहा है इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। इसी तर्क के आधार पर यह भी कहा जा सकता हेै कि भारत सरकार तो दिल्ली में बैठी थी और भोपाल में क्या हो रहा है उसे क्या पता।

इस कहानी का कोई अंत नहीं हैं। सारे अभियुक्त अपनी जिंदगी के आखिरी दौर में हैं। एंडरसन नब्बे का होने जा रहा है। केशव महिंद्रा 85 पार कर चुके हैं। शिवराज सिंह या पी चिदंबरम इस मामले को फिर अदालत में ले जाएंगे और फिर फास्ट ट्रैक अदालतों ने मामला चले तो भी चार पांच साल से पहले तक नहीं होने वाला और एंडरसन और बाकी अभियुक्त कोई अमृत खा कर नहीं आए हैं जो इस पूरे मुकदमे के अंत तक दुनिया में बने ही रहेंगे। उनकी मृत्यु के साथ भोपाल के इस नाटक का अंत नहीं होने वाला।

बहुत से बहुत हम यह सबक सीख सकते हैं कि कोई भोपाल फिर से घटित नहीं हो पाए और अगर हो जाए तो न्याय के लिए 26 साल तक इंतजार नहीं करना पड़े।

श्री आलोक तोमर प्रखर जुझारू पत्रकार हैं इन्हें आप जनादेश पर पढ सकते हैं

1 comment:

L.R.Gandhi said...

सत्ता के दलालों से कोई उम्मीद बेमानी है...
चर्चिल ने ठीक ही खा था॥ एक गरीब देश इंसानियत के लुटेरों के हाथों सौंपा जा रहा है...