Monday, August 25, 2008

मुसलिम बहुल काश्मीर भारत में नहीं रह सकता तो हिन्दू बहुल भारत में मुसलमान क्यों रह सकते हैं?

सिर से गले तक ढ़ंके सुंदर चेहरे वाली महबूबा सईद को टीवी पर तुनकते बोलते सुनता हूं तो मुझे बार-बार चंद्रशेखर की याद आती है। चन्द्रशेखर कोई चार महीने प्रधानमंत्री रहे और आम चुनाव और उसके दौरान राजीव गांधी के दुखद निधन के कारण चार महीने और काम चलाना पड़ा। लेकिन इस बीच वे सार्क सम्मेलन में माले गए जहां उनकी मुलाकात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से हुई। चंद्रशेखर इस मुलाकात में हुई बातचीत को बड़ा मजा लेकर सुनाया करते थे। उनसे दोस्ताना बातचीत में नवाज शरीफ ने कहा कि भारत-पाकिस्तान में स्थायी शांति और अच्छे सम्बन्ध हो सकते हैं अगर कश्मीर आप हमें दे दें। चंद्रशेखर कहते कि मैंने नवाज शरीफ को कहा कश्मीर तो आप अभी ले लीजिए। बस एक शर्त है कि कश्मीर के साथ आपको चौदह करोड़ मुसलमान भी लेने पड़ेंगे।

अगर कश्मीर भारत में नहीं रह सकता क्योंकि वह मुसलिम बहुमत का इलाका है। तो हिंदू बहुमत वाले भारत में मुसलमान क्यों और कैसे रह सकते हैं? अगर किसी इलाके के देश में रहने न रहने का फैसला सिर्फ बहुमत के आधार पर तय होगा तो कीजिए तय। पर समझ लीजिए की चौदह करोड़ मुसलमानों को पाकिस्तान में कहां बसाएंगे? वे पाकिस्तान की कुल आबादी को अल्पमत में ला देंगे। चंद्रशेखर बताते हैं कि इसके बाद नवाज शरीफ ने उनसे कश्मीर की कोई बात नहीं की।

चन्द्रशेखर के सामने महबूबा सईद तुनक कर कहती हैं कि हमें मुजफ्फराबाद जाने दीजिए। वहां जाने और अपना सामान वहां से लाने और भेजने का हम कश्मीरियों को हक है तो चंद्रशेखर कहते कि हक है तो जरूर जाइए। लेकिन सोच लीजिए। वहां जाने के बाद वापस आने न आने देने का हक हमें है। सिर्फ इसलिए कि जम्मू वालों ने सड़क रोक रखी है आप देश छोड़ कर पाकिस्तान चली जाएंगी तो जाइए। आपके लिए यह होगी सराय। हमारे लिए तो अपना देश है। और हम अपनी सीमाओं से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। कट्टरपंथी और अलगाववादी पुराने पुलिस अफसर मान भी लोकसभा के लिए चुन लिए गये थे। लेकिन वे सदन में अपनी लंबी तलवार लेकर जाना चाहते थे। रोक दिए गये तो उनने सिख्खी के नाम पर बड़ा हल्ला मचाया। चंद्रशेखर ने उनसे कहा- आप हरमंदिर साहब में नंगे सिर नहीं जा सकते क्योंकि वह गुरू का मंदिर है। वैसे ही यह संसद बातचीत और बहस से फैसले का लोकतांत्रिक मंदिर है। यहां भी आप इतने से बड़े कृपाण लेकर नहीं जा सकते। जैसी हरमंदिर साहब की मर्यादा है वैसी ही लोकतंत्र के इस मंदिर की मर्यादा है। आपको नहीं माननी तो आप अपने घर जाइये।

चन्द्रशेखर की ये बातें दंभ और घमंड की नहीं थीं। न्यास की थीं। संस्थाओं की मर्यादा की थीं, जिनका सम्मान किए बिना लोकतंत्र क्या आप कोई भी समाज नहीं चला सकते हैं। अब यह सचमुच शर्म और दुर्भाग्य की बात है कि कोई नेता न्यास और संस्थाओ की मर्यादा के लिए खम ठोक कर बोलने की हिम्मत नहीं करता। नहीं तो जम्मू कश्मीर में ये हाल हो सकते थे? इन नेताओं के कारण ही हाथ से हालत निकल जाती है। और इसीलिए लल्लू लिबरल कहने लगते हैं कि जम्मू और कश्मीर दो अलग देश है। साथ नहीं रह सकते। कश्मीर को आजादी चाहिए तो उसे दीजिए। फौज से तो अब उसे भारत में रख नहीं सकोगे।

अभी जारी है.......
दूसरी किश्त : हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे तो हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि भड़का कर वोट ले सकें।

तीसरी और अंतिम किश्त : भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!



जय हो भारत भाग्य विधाता-प्रथम किश्त
जनसत्ता में प्रकाशित श्री प्रभाष जोशी के कागद कारे से साभार

3 comments:

रंजन (Ranjan) said...

खुदा खैर करे..

CG said...

अगर धर्म के नाम पर ही राष्ट्र बनते तो इतने सारे क्रिश्चियन, मुस्लिम देश नहीं होते... हर धर्म का एक ही राष्ट्र होता.

सच्चाई है कि धर्म तो राष्ट्र पर कब्जा करने का साधन मात्र है, जिसका दोहन राज करने वाले बखूबी जानते हैं. स्वतंत्र व्यक्ति कुसत्ता सह नहीं सकता, इसलिये डर के बंधन में बांध कर कुसत्ता चलाई जाती है.

चाहे कश्मीर हो, अमेरिका, सउदी अरब या अपना भारत, हर जगह दूसरे सम्प्रदाय/समाज/देश का डर दिखा कर कुसत्ता काबिज़ है

आपके सवाल का जवाब यह है, कि जहां भी इंसानियत की कीमत है वहां दूसरा इंसान रह सकता है, चाहे किसी धर्म का हो.

Nitish Raj said...

मुसलिम बहुल कश्मीर भारत में नहीं रह सकता तो हिन्दू बहुल भारत में मुसलमान क्यों रह सकते हैं? बिल्कुल सही, सहमत हूं।