Tuesday, August 26, 2008

भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!

प्रथम किश्त: मुसलिम बहुल काश्मीर भारत में नहीं रह सकता तो हिन्दू बहुल भारत में मुसलमान क्यों रह सकते हैं?

दूसरी किश्त: हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे तो हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि भड़का कर वोट ले सकें।

शेख अब्दुल्ला से लेकर मुफ्ती मोहम्मद सईद तक सभी कश्मीरी नेताओं ने भारतीय राज्य और लोकतंत्र का ऐसा ही भयादोहन किया है। ऐसी कीमत चुका कर और ऐसे भय में भारत क्यों रहे? भारत ने तो कश्मीर नहीं हड़पा है। राजाओं को इधर या उधर जाने की छूट थी। पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने की जल्दी में कश्मीर के राजा को भारत में मिलने पर मजबूर किया पाकिस्तानी सेना फिर भी आधा कश्मीर छोड़ कर हट जाती तो आत्म निर्णय कश्मीर कर सकता था। लेकिन पाकिस्तान सेना से हथियाए कश्मीर को रख कर बाकी का कश्मीर आत्म निर्णय से लेना चाहता था। भारत ने ठीक ही ऐसा नहीं होने दिया। अब वह कश्मीर को बार -बार भड़का कर वहां आतंकवाद चला कर आजादी की मांग करवाता है। भारत कश्मीर इसलिए छोड़ दे कि मुसलामान पाकिस्तान में मिलने का अधिकार रखते हैं। ऐसा करके तो वह पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य होने के अपने अस्तित्व के सिद्धांत को ही तोड़ देगा। हम हिंदू भारत नहीं होना चाहते। जैसा कश्मीरियों को आत्म निर्णय का अधिकार है भारत को भी आत्म निर्णय का हक है।

फिर भी जब पाकिस्तानी आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को मार कर और इनके घर जला कर घाटी में खदेड़ दिया तब क्या कश्मीर की आबादी बदली नहीं जा रही थी? कश्मीरी पंडितों का कश्मीर पर कश्मीरी मुसलमानों से कम अधिकार है? वे जब खदेड़े जा रहे थे तो क्या कश्मीरी मुसलमानों ने उनकी रक्षा की? उन्हें अपने में मिला कर कश्मीरी सामाजिक सुरक्षा दी? आतंकवादियों के सामने तो कश्मीरी मुसलमान डर कर चुप हो जाते हैं। लेकिन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को यात्रियों के लिए भी ज़मीन दी जाए तो कश्मीरी मुसलमान आतंकवादियों के साथ हो जाते हैं। इस दोगलेपन को कोई इंसाफ कह सकता है? जो कश्मीरी मुसलमान अपने ही कश्मीरी पंडित भाईयों की रक्षा नहीं कर सकते उन्हें भारतीय पुलिस और सेना की रक्षा क्यों चाहिए? कश्मीरी मुसलमानों को इंसाफ चाहिए कश्मीरी पंडितों को नहीं चाहिए इंसाफ? इंसाफ क्या ब्लैकमेल करने वालों को ही मिलेगा?

कश्मीर को आजादी दे दो तो सिखों को खालिस्तान क्यों नहीं? असम को अलग देश मानने और बनाने वाले असमिया हिंदुओं को क्यों नहीं? तमिलनाडु के तमिलों को श्रीलंका के तमिलों से मिल कर स्वतंत्र ईलम क्यों नहीं? उत्तर पूर्व नागालैंड, मिजोरम, अरूणाचल, मणिपुर आदि को स्वतंत्र देश क्यों नहीं? पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश से मिल कर अलग बांग्ला राष्ट्र क्यों नहीं? यानी भारत वह क्यों न करे जो सन सैंतालीस में अंग्रेज भारत का करना चाहते थे, पर कर न सके। अब वह विविधता, बहुलता और धर्मनिरपेक्षता का महादेश क्यों बना रहे? पाकिस्तान उसको ऐसा नहीं रहने देना चाहता। चीन और अमेरिका भी नहीं चाहते। भारत खंड-खंड होकर बिखर जाए ऐसा दुनियां के कई राष्ट्र चाहते हैं? स्वतंत्र संप्रभु और शक्तिशाली राष्ट्र का जमाना गया। अब भूमंडलीकरण उदारीकरण और निजीकरण का जमाना है। एक मात्र महाबली महा राष्ट्र अमेरिका है। उसे ही दुनिया मानो और उसमें विलीन हो जाओ। महाबली के आगे किसकी चल सकती है? राष्ट्रवाद और राज्यवाद और रामराज्य सब कालबाह्य हो गए हैं। सत्य सिर्फ नव उदार अर्थ व्यवस्था और टेक्नोलॉजी है। उन्हें मानो और मोक्ष पाओ।

भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!



जय हो भारत भाग्य विधाता- तीसरी व अंतिम किश्त
जनसत्ता में प्रकाशित श्री प्रभाष जोशी के कागद कारे से साभार

1 comment:

Shahi said...

Bahut hi sarthak post hai....

Dhanyavad....