Wednesday, December 3, 2008

मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सरकार को आतंकवाद पर लगाम न लगाने के लिये डांटा

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने मुंबई में आतंकवादी हमलों के परिप्रेक्ष्य में भारत के साथ संबंधों में तनाव के लिए पाकिस्तान की मौजूदा सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि आतंकवाद से लड़ने के लिए सरकार कितनी सख्त है.

भूतपूर्व सदर मुशर्रफ ने लंदन में एक इंटरव्यू में कहा कि "यदि आप आतंकवाद से नहीं लड़ते और सभी को इस बात का एहसास नहीं कराते कि आप इसे लेकर कितने सख्त हैं, तो आपको अमेरिका जैसे अन्य देशों और भारत के साथ इस तरह के हालात में समस्या हो सकती है. मुशर्रफ ने कहा कि सरकार के रुख के कारण भारत के साथ हालात जटिल हो गए हैं"

मुशर्रफ ने कहा कि पाकिस्तान में जिस तरह की हिंसा अब देखी गई है, मेरे समय में कभी भी नहीं हुई. 'द न्यूज' में प्रकाशित इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि जल्दी ही विचार कर लिया था कि आतंकवाद के खिलाफ मैं अमेरिका के साथ हूं. आतंकवादियों और चरमपंथियों को रोकने के लिए मैंने अपने सभी अधिकारों का इस्तेमाल किया. मुशर्रफ ने कहा कि आतंकवादियों से निपटने का एक ही रास्ता है -उनसे लड़ना.

सेना मेरी हिफाजत कर रही है, लेकिन कुछ भी संभव है. पाकिस्तान बहुत बुरी स्थिति में है. मैं विदेशी निवेश लाया. मैंने सड़कें बनवाईं. उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान में रहना चाहते हैं उन्होंने कहा कि पाकिस्तान मेरा घर है और मैं उसे नहीं छोड़ूंगा, हालांकि मुझे पाकिस्तान में खतरा हो सकता है.

केवल मुशर्रफ ही नहीं पाकिस्तान की आम जनता पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को पोषित किये जाने पर रोष जता रही है और जनता का रुख भांपकर पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई अपने धंधेबाज चैनलों के जरिये अपने आपको पाक साफ साबित करने की मुहिम चलाने और इसे भारत द्वारा षड़यंत्र बताने की तैयारी करने लगी है.

Sunday, November 30, 2008

क्या आपने कल स्टारटीवी पर करकरे की मौत का सच देखा है

कल स्टार टीवी पर करकरे की मौत का सच नाम से स्टोरी दिखायी जा रही थी, जिसमें एक पुलिसकर्मी का बयान बताया जा रहा था जो इन सबके साथ था और बच गया था.

लेकिन इस सच को बताते बताते न जाने क्या हुआ, स्टार टीवी ने अपने होंठ सिल लिये. मैं इस घटना को शुरू से नहीं देख पाया था क्या आपने कल स्टारटीवी पर करकरे की मौत का सच देखा ह? यदि हां तो बताईये कि क्या था वह प्रसारण

Friday, September 5, 2008

रईस नंदा को मिली आधी-अधूरी सजा

लगातार तीन दिन इंतजार करने के बाद न्यायपालिका में रईसों की चली। जिस अपराध में भारत के भूतपूर्व नौ सेनाध्यक्ष के पोते संजीव नंदा को पहले दस साल की सजा मिलना तय मानी जा रही थी लेकिन लगातार तीन दिन इंतजार के बाद पांच साल की सजा दी गई और उसमें से भी वे दो साल कम कर दिए जाएंगे जो संजीव नंदा विचाराधीन कैदी के रूप में काट चुके हैं।

पिछले दस वर्षों के सबसे चर्चित मुकदमाें में से एक बीएमडब्ल्यू दुर्घटना कांड में लगातार तीन दिन तक फैसले की प्रतीक्षा करवाने के बाद अदालत ने नंदा को राहत की तरह बहुत कम सजा सुनाई और नंदा परिवार इसके खिलाफ भी अपील करेगा। इस मामले में बचाव और अभियोजन दोनों पक्षों के वकील मिल गए थे और गवाह को पैसा देने की कोशिश एक टीवी चैनल ने सार्वजनिक रूप से दिखाई थी। इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन दोनों वकीलों से वकालत करने का अधिकार भी छीन लिया था। इनमें से एक वकील और कांग्रेस नेता आर के आनंद तो खुद को मिली सजा के खिलाफ अपील करने सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गए हैं।

दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 1999 में अपनी बीएमडब्ल्यू कार से तीन पुलिसकर्मियों समेत छह लोगों को कुचल कर मारने के मामले में पूर्व नौसेना प्रमुख एसएम नंदा के पौत्र संजीव नंदा को आज पांच वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश न्यायमूर्ति विनोद कुमार ने कहा- संजीव नंदा मैं आपको पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाता हूं और आपके द्वारा जेल में बिताए गये समय को इसमें से कम कर दिया जायेगा।

न्यायमूर्ति विनोद कुमार ने इससे पहले नंदा को कठोर दंड के प्रावधान के तहत दोषी करार दिया था जिसमें अधिकतम 10 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई जा सकती थी। बहरहाल अदालत ने उन पर कोई जुर्माना नहीं लगाया। अदालत ने दोषी ठहराए गए एक अन्य व्यक्ति तथा कारोबारी राजीव गुप्ता को साक्ष्य मिटाने के आरोप में एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

जबकि उनके दो कर्मचारी भोलानाथ तथा श्याम सिंह को दुर्घटना के बाद घटनास्थल से खून के धब्बे और पीड़ितों के मांस के टुकड़े हटाने के मामले में छह-छह महीने के कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने गुप्ता पर 10 हजार रुपए तथा उनके दोनों कर्मचारियों पर 100-100 रुपए का अर्थ दंड लगाया। इन्हें आईपीसी की धारा 201 (साक्ष्य मिटाने) के तहत दोषी करार दिया गया था। संजीव नंदा को आईपीसी की धारा 304 के भाग दो (गैर इरादतन हत्या) के तहत दो सितंबर को दोषी करार दिया गया था।

साभार: http://aloktomar.com/?p=200 डाटालाइन इंडिया

Tuesday, August 26, 2008

भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!

प्रथम किश्त: मुसलिम बहुल काश्मीर भारत में नहीं रह सकता तो हिन्दू बहुल भारत में मुसलमान क्यों रह सकते हैं?

दूसरी किश्त: हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे तो हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि भड़का कर वोट ले सकें।

शेख अब्दुल्ला से लेकर मुफ्ती मोहम्मद सईद तक सभी कश्मीरी नेताओं ने भारतीय राज्य और लोकतंत्र का ऐसा ही भयादोहन किया है। ऐसी कीमत चुका कर और ऐसे भय में भारत क्यों रहे? भारत ने तो कश्मीर नहीं हड़पा है। राजाओं को इधर या उधर जाने की छूट थी। पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने की जल्दी में कश्मीर के राजा को भारत में मिलने पर मजबूर किया पाकिस्तानी सेना फिर भी आधा कश्मीर छोड़ कर हट जाती तो आत्म निर्णय कश्मीर कर सकता था। लेकिन पाकिस्तान सेना से हथियाए कश्मीर को रख कर बाकी का कश्मीर आत्म निर्णय से लेना चाहता था। भारत ने ठीक ही ऐसा नहीं होने दिया। अब वह कश्मीर को बार -बार भड़का कर वहां आतंकवाद चला कर आजादी की मांग करवाता है। भारत कश्मीर इसलिए छोड़ दे कि मुसलामान पाकिस्तान में मिलने का अधिकार रखते हैं। ऐसा करके तो वह पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य होने के अपने अस्तित्व के सिद्धांत को ही तोड़ देगा। हम हिंदू भारत नहीं होना चाहते। जैसा कश्मीरियों को आत्म निर्णय का अधिकार है भारत को भी आत्म निर्णय का हक है।

फिर भी जब पाकिस्तानी आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को मार कर और इनके घर जला कर घाटी में खदेड़ दिया तब क्या कश्मीर की आबादी बदली नहीं जा रही थी? कश्मीरी पंडितों का कश्मीर पर कश्मीरी मुसलमानों से कम अधिकार है? वे जब खदेड़े जा रहे थे तो क्या कश्मीरी मुसलमानों ने उनकी रक्षा की? उन्हें अपने में मिला कर कश्मीरी सामाजिक सुरक्षा दी? आतंकवादियों के सामने तो कश्मीरी मुसलमान डर कर चुप हो जाते हैं। लेकिन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को यात्रियों के लिए भी ज़मीन दी जाए तो कश्मीरी मुसलमान आतंकवादियों के साथ हो जाते हैं। इस दोगलेपन को कोई इंसाफ कह सकता है? जो कश्मीरी मुसलमान अपने ही कश्मीरी पंडित भाईयों की रक्षा नहीं कर सकते उन्हें भारतीय पुलिस और सेना की रक्षा क्यों चाहिए? कश्मीरी मुसलमानों को इंसाफ चाहिए कश्मीरी पंडितों को नहीं चाहिए इंसाफ? इंसाफ क्या ब्लैकमेल करने वालों को ही मिलेगा?

कश्मीर को आजादी दे दो तो सिखों को खालिस्तान क्यों नहीं? असम को अलग देश मानने और बनाने वाले असमिया हिंदुओं को क्यों नहीं? तमिलनाडु के तमिलों को श्रीलंका के तमिलों से मिल कर स्वतंत्र ईलम क्यों नहीं? उत्तर पूर्व नागालैंड, मिजोरम, अरूणाचल, मणिपुर आदि को स्वतंत्र देश क्यों नहीं? पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश से मिल कर अलग बांग्ला राष्ट्र क्यों नहीं? यानी भारत वह क्यों न करे जो सन सैंतालीस में अंग्रेज भारत का करना चाहते थे, पर कर न सके। अब वह विविधता, बहुलता और धर्मनिरपेक्षता का महादेश क्यों बना रहे? पाकिस्तान उसको ऐसा नहीं रहने देना चाहता। चीन और अमेरिका भी नहीं चाहते। भारत खंड-खंड होकर बिखर जाए ऐसा दुनियां के कई राष्ट्र चाहते हैं? स्वतंत्र संप्रभु और शक्तिशाली राष्ट्र का जमाना गया। अब भूमंडलीकरण उदारीकरण और निजीकरण का जमाना है। एक मात्र महाबली महा राष्ट्र अमेरिका है। उसे ही दुनिया मानो और उसमें विलीन हो जाओ। महाबली के आगे किसकी चल सकती है? राष्ट्रवाद और राज्यवाद और रामराज्य सब कालबाह्य हो गए हैं। सत्य सिर्फ नव उदार अर्थ व्यवस्था और टेक्नोलॉजी है। उन्हें मानो और मोक्ष पाओ।

भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!



जय हो भारत भाग्य विधाता- तीसरी व अंतिम किश्त
जनसत्ता में प्रकाशित श्री प्रभाष जोशी के कागद कारे से साभार

Monday, August 25, 2008

हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे तो हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि भड़का कर वोट ले सकें।

छह साल से जिस जम्मू-कश्मीर में ऐसा लोकतंत्र और खुशहाली चल रही थी उसमें दो महीने में ही ऐसी हालत हो गई कि जम्मू कश्मीर को ठीक करना चाहता है और कश्मीर आजाद होकर पाकिस्तान में मिलना चाहता है। कहते हैं पाकिस्तान इतने साल कोशिश करके भी जम्मू-कश्मीर को आपस में ऐसी दुश्मनी से भिड़ा नहीं पाया था वह अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दो महीने के लिए कुछ एकड़ ज़मीन यात्रियों की सुविधा के लिए देने की पेशकश ने कर दिखाया। कहते हैं यह ज़हर पहले के राज्यपाल सेनापति सिन्हा नें फैलाया जो सांप्रदायिक तबीयत के आदमी हैं। भाजपा और संघ वाले कहते हैं कि यह सब कांग्रेस की मुसलिम तुष्टिकरण की नीति के कारण हुआ क्योंकि उसकी सरकार ने मुसलिम कट्टरपंथियों के दबाव में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी गई ज़मीन वापस ले ली।

अब अमरनाथ यात्रा कब से सिर्फ हिन्दुओं की हो गई? कथा है कि उस गुफा में बर्फ का शिवलिंग बनता है यह खोज कर एक कश्मीरी मुसलमान ने ही बताया था। उसका परिवार अब तक उस गुफा की देखभाल करता है। उस दुर्गम स्थान तक मुसलमान ही यात्रियों को ले जाते हैं। वहीं उनकी देखरेख और सेवा करते हैं। उनकी सुविधाओं का ध्यान रखते हैं। इसमें अजीब और अचरज करने की कोई बात नहीं है। आखिर कश्मीर कब से शैव है? इस्लाम का जब जन्म भी नहीं हुआ था तब से कश्मीर शिव पूजक है। सबसे पुराना शैव सम्प्रदाय- कालमुख- कश्मीर का है। उसके बाद पाशुपत संप्रदाय आया। जिस इलाके में शिव इतने प्राचीन हैं वहां के लोग बाद में आए मुसलमान को कबूल भी कर गए तो उनकी सामाजिक और दिव्यता के मूल्यों की परंपरा ख़त्म थोड़े ही हो सकती है। देश में ऐसे कई हिंदु देवस्थान हैं जिनकी देखरेख और सेवा मुसलमान करते हैं और ऐसी कई मजारें और पीर हैं जिनकी सेवा हिंदू करतें हैं। पुश्त दर पुश्त यह रिवाज चला आ रहा है अमरनाथ यात्रा हिन्दु मुस्लिम सहयोग, सहकार और समरसता की सदियों पुरानी मिसाल है। और कश्मीर में तो इस्लाम भी सूफी परंपरा से पगा हुआ है।

फिर क्यों अमरनाथ यात्रियों के लिए अस्थायी सुविधाएं बनाने को श्राइन बोर्ड को दी गई। जो यात्रा हिंदू- मुस्लिम एकता और समरसता की ऐसी मिसाल थी उसने कश्मीर घाटी के मुसलमानों को जम्मू के हिंदुओं के सामने दुश्मनी में क्यों खड़ा दिया क्योंकि पुरानी मोहम्मद सईद जी पार्टी पीडीपी को गठबंधन में सत्ता पहले भोग लेने के बाद चुनाव के पहले कांग्रेस से अलग होना था? क्योंकि कांग्रेस को अगले चुनाव के लिए फारूख अब्दुला की नेशनल कांफरन्स ज्यादा अच्छी साथी पार्टी लग रही थी? मुफ्ती की पीडीपी- पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी कहलाती है। लेकिन कांग्रेस से अलग होने के लिए उसने श्राइन बोर्ड को यात्रियों के लिए दी जा रही ज़मीन का सांप्रदायिकरण करना बेहतर समझा। बिना चिंता किए कि इस फैसले में वह गुलाम नबी आजाद की सरकार के साथ थी। क्यों? क्योंकि कश्मीर में हिंदु विरोधी और कंट्टरपंथी और अलगाववादी होना चुनाव में ज्यादा लाभदायी और काम का होता है?

मुफ्ती मुहम्मद सईद वही हैं जो विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में गृहमंत्री हुआ करते थे। ये महबूबा वही हैं जिनकी छोटी बहन रूबिया का कश्मीरी आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और जिसे छुड़ाने के लिए गृहमंत्री ने दुर्दांत आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर औश्र उनके साथियों को छोड़ दिया था। अब इन्हीं मुफ्ती की पार्टी ने अमरनाथ यात्रियों के लिए दी जाने वाली ज़मीन को हिंदु-मुस्लिम का मामला बना दिया। जहर फैलाया कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को ज़मीन देकर कश्मीर घाटी में हिंदुओं को बसाया जाएगा ताकि वहां मुसलमानों का बहुमत न रहे। अमरनाथ यात्रा कश्मीरी मुसलमानों में भय और अलगाव का कारण बना कर प्रचारित किया। यानी जब हमें राज करने दोगे तक हम लोकतंत्र और भारतीय राज्य का पूरा लाभ लेंगे। लेकिन जैसे ही समझौते के मुताबिक हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि आपका भयादोहन और लोगों का अलगाव भड़का कर वोट ले सकें।

प्रथम किश्त : मुसलिम बहुल काश्मीर भारत में नहीं रह सकता तो हिन्दू बहुल भारत में मुसलमान क्यों रह सकते हैं?
तीसरी और अंतिम किश्त : भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!
अभी जारी है.......



जय हो भारत भाग्य विधाता -दूसरी किश्त
जनसत्ता में प्रकाशित श्री प्रभाष जोशी के कागद कारे से साभार

मुसलिम बहुल काश्मीर भारत में नहीं रह सकता तो हिन्दू बहुल भारत में मुसलमान क्यों रह सकते हैं?

सिर से गले तक ढ़ंके सुंदर चेहरे वाली महबूबा सईद को टीवी पर तुनकते बोलते सुनता हूं तो मुझे बार-बार चंद्रशेखर की याद आती है। चन्द्रशेखर कोई चार महीने प्रधानमंत्री रहे और आम चुनाव और उसके दौरान राजीव गांधी के दुखद निधन के कारण चार महीने और काम चलाना पड़ा। लेकिन इस बीच वे सार्क सम्मेलन में माले गए जहां उनकी मुलाकात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से हुई। चंद्रशेखर इस मुलाकात में हुई बातचीत को बड़ा मजा लेकर सुनाया करते थे। उनसे दोस्ताना बातचीत में नवाज शरीफ ने कहा कि भारत-पाकिस्तान में स्थायी शांति और अच्छे सम्बन्ध हो सकते हैं अगर कश्मीर आप हमें दे दें। चंद्रशेखर कहते कि मैंने नवाज शरीफ को कहा कश्मीर तो आप अभी ले लीजिए। बस एक शर्त है कि कश्मीर के साथ आपको चौदह करोड़ मुसलमान भी लेने पड़ेंगे।

अगर कश्मीर भारत में नहीं रह सकता क्योंकि वह मुसलिम बहुमत का इलाका है। तो हिंदू बहुमत वाले भारत में मुसलमान क्यों और कैसे रह सकते हैं? अगर किसी इलाके के देश में रहने न रहने का फैसला सिर्फ बहुमत के आधार पर तय होगा तो कीजिए तय। पर समझ लीजिए की चौदह करोड़ मुसलमानों को पाकिस्तान में कहां बसाएंगे? वे पाकिस्तान की कुल आबादी को अल्पमत में ला देंगे। चंद्रशेखर बताते हैं कि इसके बाद नवाज शरीफ ने उनसे कश्मीर की कोई बात नहीं की।

चन्द्रशेखर के सामने महबूबा सईद तुनक कर कहती हैं कि हमें मुजफ्फराबाद जाने दीजिए। वहां जाने और अपना सामान वहां से लाने और भेजने का हम कश्मीरियों को हक है तो चंद्रशेखर कहते कि हक है तो जरूर जाइए। लेकिन सोच लीजिए। वहां जाने के बाद वापस आने न आने देने का हक हमें है। सिर्फ इसलिए कि जम्मू वालों ने सड़क रोक रखी है आप देश छोड़ कर पाकिस्तान चली जाएंगी तो जाइए। आपके लिए यह होगी सराय। हमारे लिए तो अपना देश है। और हम अपनी सीमाओं से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। कट्टरपंथी और अलगाववादी पुराने पुलिस अफसर मान भी लोकसभा के लिए चुन लिए गये थे। लेकिन वे सदन में अपनी लंबी तलवार लेकर जाना चाहते थे। रोक दिए गये तो उनने सिख्खी के नाम पर बड़ा हल्ला मचाया। चंद्रशेखर ने उनसे कहा- आप हरमंदिर साहब में नंगे सिर नहीं जा सकते क्योंकि वह गुरू का मंदिर है। वैसे ही यह संसद बातचीत और बहस से फैसले का लोकतांत्रिक मंदिर है। यहां भी आप इतने से बड़े कृपाण लेकर नहीं जा सकते। जैसी हरमंदिर साहब की मर्यादा है वैसी ही लोकतंत्र के इस मंदिर की मर्यादा है। आपको नहीं माननी तो आप अपने घर जाइये।

चन्द्रशेखर की ये बातें दंभ और घमंड की नहीं थीं। न्यास की थीं। संस्थाओं की मर्यादा की थीं, जिनका सम्मान किए बिना लोकतंत्र क्या आप कोई भी समाज नहीं चला सकते हैं। अब यह सचमुच शर्म और दुर्भाग्य की बात है कि कोई नेता न्यास और संस्थाओ की मर्यादा के लिए खम ठोक कर बोलने की हिम्मत नहीं करता। नहीं तो जम्मू कश्मीर में ये हाल हो सकते थे? इन नेताओं के कारण ही हाथ से हालत निकल जाती है। और इसीलिए लल्लू लिबरल कहने लगते हैं कि जम्मू और कश्मीर दो अलग देश है। साथ नहीं रह सकते। कश्मीर को आजादी चाहिए तो उसे दीजिए। फौज से तो अब उसे भारत में रख नहीं सकोगे।

अभी जारी है.......
दूसरी किश्त : हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे तो हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि भड़का कर वोट ले सकें।

तीसरी और अंतिम किश्त : भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!



जय हो भारत भाग्य विधाता-प्रथम किश्त
जनसत्ता में प्रकाशित श्री प्रभाष जोशी के कागद कारे से साभार

Monday, August 11, 2008

तेरे दर पे सनम, चले आये

जब इतने सारे ब्लागर मैदान में हैं तो हम ही क्यों पीछे रहें, सो आगये हैं.
तेरे दर पे सनम, चले आये
तू न आया तो हम, चले आये.