Monday, August 25, 2008

हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे तो हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि भड़का कर वोट ले सकें।

छह साल से जिस जम्मू-कश्मीर में ऐसा लोकतंत्र और खुशहाली चल रही थी उसमें दो महीने में ही ऐसी हालत हो गई कि जम्मू कश्मीर को ठीक करना चाहता है और कश्मीर आजाद होकर पाकिस्तान में मिलना चाहता है। कहते हैं पाकिस्तान इतने साल कोशिश करके भी जम्मू-कश्मीर को आपस में ऐसी दुश्मनी से भिड़ा नहीं पाया था वह अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दो महीने के लिए कुछ एकड़ ज़मीन यात्रियों की सुविधा के लिए देने की पेशकश ने कर दिखाया। कहते हैं यह ज़हर पहले के राज्यपाल सेनापति सिन्हा नें फैलाया जो सांप्रदायिक तबीयत के आदमी हैं। भाजपा और संघ वाले कहते हैं कि यह सब कांग्रेस की मुसलिम तुष्टिकरण की नीति के कारण हुआ क्योंकि उसकी सरकार ने मुसलिम कट्टरपंथियों के दबाव में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी गई ज़मीन वापस ले ली।

अब अमरनाथ यात्रा कब से सिर्फ हिन्दुओं की हो गई? कथा है कि उस गुफा में बर्फ का शिवलिंग बनता है यह खोज कर एक कश्मीरी मुसलमान ने ही बताया था। उसका परिवार अब तक उस गुफा की देखभाल करता है। उस दुर्गम स्थान तक मुसलमान ही यात्रियों को ले जाते हैं। वहीं उनकी देखरेख और सेवा करते हैं। उनकी सुविधाओं का ध्यान रखते हैं। इसमें अजीब और अचरज करने की कोई बात नहीं है। आखिर कश्मीर कब से शैव है? इस्लाम का जब जन्म भी नहीं हुआ था तब से कश्मीर शिव पूजक है। सबसे पुराना शैव सम्प्रदाय- कालमुख- कश्मीर का है। उसके बाद पाशुपत संप्रदाय आया। जिस इलाके में शिव इतने प्राचीन हैं वहां के लोग बाद में आए मुसलमान को कबूल भी कर गए तो उनकी सामाजिक और दिव्यता के मूल्यों की परंपरा ख़त्म थोड़े ही हो सकती है। देश में ऐसे कई हिंदु देवस्थान हैं जिनकी देखरेख और सेवा मुसलमान करते हैं और ऐसी कई मजारें और पीर हैं जिनकी सेवा हिंदू करतें हैं। पुश्त दर पुश्त यह रिवाज चला आ रहा है अमरनाथ यात्रा हिन्दु मुस्लिम सहयोग, सहकार और समरसता की सदियों पुरानी मिसाल है। और कश्मीर में तो इस्लाम भी सूफी परंपरा से पगा हुआ है।

फिर क्यों अमरनाथ यात्रियों के लिए अस्थायी सुविधाएं बनाने को श्राइन बोर्ड को दी गई। जो यात्रा हिंदू- मुस्लिम एकता और समरसता की ऐसी मिसाल थी उसने कश्मीर घाटी के मुसलमानों को जम्मू के हिंदुओं के सामने दुश्मनी में क्यों खड़ा दिया क्योंकि पुरानी मोहम्मद सईद जी पार्टी पीडीपी को गठबंधन में सत्ता पहले भोग लेने के बाद चुनाव के पहले कांग्रेस से अलग होना था? क्योंकि कांग्रेस को अगले चुनाव के लिए फारूख अब्दुला की नेशनल कांफरन्स ज्यादा अच्छी साथी पार्टी लग रही थी? मुफ्ती की पीडीपी- पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी कहलाती है। लेकिन कांग्रेस से अलग होने के लिए उसने श्राइन बोर्ड को यात्रियों के लिए दी जा रही ज़मीन का सांप्रदायिकरण करना बेहतर समझा। बिना चिंता किए कि इस फैसले में वह गुलाम नबी आजाद की सरकार के साथ थी। क्यों? क्योंकि कश्मीर में हिंदु विरोधी और कंट्टरपंथी और अलगाववादी होना चुनाव में ज्यादा लाभदायी और काम का होता है?

मुफ्ती मुहम्मद सईद वही हैं जो विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में गृहमंत्री हुआ करते थे। ये महबूबा वही हैं जिनकी छोटी बहन रूबिया का कश्मीरी आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और जिसे छुड़ाने के लिए गृहमंत्री ने दुर्दांत आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर औश्र उनके साथियों को छोड़ दिया था। अब इन्हीं मुफ्ती की पार्टी ने अमरनाथ यात्रियों के लिए दी जाने वाली ज़मीन को हिंदु-मुस्लिम का मामला बना दिया। जहर फैलाया कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को ज़मीन देकर कश्मीर घाटी में हिंदुओं को बसाया जाएगा ताकि वहां मुसलमानों का बहुमत न रहे। अमरनाथ यात्रा कश्मीरी मुसलमानों में भय और अलगाव का कारण बना कर प्रचारित किया। यानी जब हमें राज करने दोगे तक हम लोकतंत्र और भारतीय राज्य का पूरा लाभ लेंगे। लेकिन जैसे ही समझौते के मुताबिक हमें सत्ता से बाहर बैठाओगे हम अलगाववादी और भारत और हिंदू विरोधी आग लगाएंगे ताकि आपका भयादोहन और लोगों का अलगाव भड़का कर वोट ले सकें।

प्रथम किश्त : मुसलिम बहुल काश्मीर भारत में नहीं रह सकता तो हिन्दू बहुल भारत में मुसलमान क्यों रह सकते हैं?
तीसरी और अंतिम किश्त : भारत नामक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य हमने इसीलिए बनाया था। जय हो भारत भाग्य विधाता!
अभी जारी है.......



जय हो भारत भाग्य विधाता -दूसरी किश्त
जनसत्ता में प्रकाशित श्री प्रभाष जोशी के कागद कारे से साभार

2 comments:

Arun Arora said...

दोस्त ये अंधा कौन है और नैन सुख कौन ये भी बताओ , अब तुम तो दोनो मे नही हो :)

नयनसुख said...

पंगेबाज महोदय, चूंकि मैं नयनसुख हूं इसलिये मैं ही तो आंख का अंधा हुआ.
आप सब तो बाचश्म चश्मदीद है.