Saturday, June 12, 2010

ये हैं यूनियन कार्बाइड लि.द्वारा स्थापित ट्रस्ट के आजीवन चैयरमैन एवं एवं भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ए. एम. अहमदी.



माननीय ए.एम. अहमदी 1994 से लेकर 1997 तक भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं.

भोपाल गैस नरसंहार के बाद केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने यूनियन कार्बाइड इन्डिया लि. के विरुद्द धारा 304 (II) में मुकदमा चलाने की सिफारिश की जिसमें दस साल तक की सजा का प्रावधान था लेकिन यूनियन कार्बाइड इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई

13 सितम्बर 1996 को माननीय ए.एम. अहमदी ने यूनियन कार्बाइड इन्डिया लि, के पक्ष में फैसला दे देते हुये सिर्फ धारा 304 (A) के अनर्गत मुकदमा चलाने का निर्देश दिया. इस फैसले को सारी दुनियां में एक धब्बा माना जाता है और इसकी सारी दुनियां में मानवाधिकार, पर्यावरण एवं न्यायिक व संवेधानिक विशेषज्ञों ने निन्दा की.

इसी निर्देश के कारण भोपाल की अदालत भोपाल गैस नरसंहार के मुजरिमों को सिर्फ दो साल तक की सजा सुनाने को बेबस थी.

मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर होने के बाद माननीय ए.एम. अहमदी वर्तमान में यूनियन कार्बाइड लि. द्वारा ही स्थापित किये गये एक ट्रस्ट के आजीवन चैयरमैन पद पर सुशोभित हैं.


आईये 25 सालो की पीड़ा भूलकर एक पुराना गीत सुनें

देखो देखो देखो.
पैसे पर बिकता है कोर्ट देखो
कैसे ? ये डंके की चोट देखो
मुन्सिफ ही मु़ज़रिम का हामी बना
किस किस ने लूटा खसोट देखो
पैसा फैंको, तमाशा देखो.

देखो ये है उनका, हंसता गाता बन्दर
एक एक टुकड़े पर, नाच दिखाता बन्दर
दायें बायें बन्दर, नीचे ऊपर बन्दर
देख रहे भोपाली, हर कुर्सी पर बन्दर

बिगड़ी व्यवस्था की चाल देखो
किससे कहें अपना हाल देखो
हर एक डाली पे उल्लू जमा
जीना हुआ है मुहाल देखो
पैसा फैंको, तमाशा देखो.

सुनते हैं कि ये गाना दुश्मन फिल्म का हिस्सा था जिसे बाद में फिल्म से हटा दिया गया

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6 comments:

honesty project democracy said...

अब तो इतना ही कह सकते है की चाहे चीफ जस्टिस हो या राष्ट्रपति यो हो कोई जिला अदालत का जज जिसने भी न्याय का गला घोंटकर अपना जीवन सवांरने और भोपाल गैस कांड ही नहीं पूरे इंसानियत को शर्मशार करने का काम किया है उनको हर हाल में सजा दो या आम इमानदार और न्याय प्रिय जनता को सामूहिक फांसी पर चढ़ा दो ,जिससे आने वाली पीढ़ी इन कुकर्मी चीफ जस्टिस और प्रधान मंत्रियों की वजह से कम से कम ईमानदारी और न्याय को जन्म लेते ही भूल जाये ?

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस मामले में निर्णय ए. अहमदी और एस. मजूमदार की बैंच ने सहमति से दिनांक 13.09.1996 को दिया था। निर्णय मूलतः एस. मजूमदार द्वारा लिखा गया था। यह निर्णय देश में प्रभावी कानून के अनुसार था,यदि यह समझा जाता है कि वह कानून के अनुसार नहीं था तो सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध वहीं वृहतपीठ के समक्ष उसे चुनौती दी जा सकती थी। यह काम मध्यप्रदेश सरकार का था। उस समय मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे। इस निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं किए जाने के लिए उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है, ए. अहमदी को नहीं।
भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल ट्रस्ट सुप्रीमकोर्ट के आदेश से स्थापित किया गया था। ऐसी स्थिति में ए.अहमदी और न्यायपालिका को किसी भी प्रकार से दोषी ठहराया जाना उचित नहीं है। न्यायाधीश और न्यायपालिका को इस तरह अकारण दोषी ठहरा कर वास्तविक अपराधी जो कि भारतीय राजनीति में मौजूद हैं उन के अपराधों की गंभीरता को कम किया जा रहा है।

Amit said...

जस्टिस अहमदी ने बयान दिया था की किसी ने रिव्यू पिटीशन फ़ाइल नहीं की जो की एकदम गलत था.

भोपाल गैस पिधित संघ ने रिव्यू पिटीशन फ़ाइल भी की थी. नीचे पढ़िए
""Our organisation had filed a review petition but that was dismissed in 1996 by the Supreme Court, which was then headed by Ahmadi himself," the convenor of Bhopal Gas Peedit Mahila Udyog Sangthan, Abdul Jabbar had said.

As the guilty had not been charged under Section 304 of IPC (culpable homicide not amounting to murder), they were let off with imprisonment of only two years each, Jabbar claimed.

Justice Ahmadi, who had delivered the Bhopal gas tragedy case verdict in on June 09 1996, said he could not recollect whether a review petition was filed. However, he had earlier stated in a television interview that no review petition was filed. "

इस ट्रस्ट के खाते भी पब्लिक नहीं है इसलिए पता नहीं की कितना पैसा कहाँ गया...

RAJENDRA said...

पिछले जज साहिबान और भी हैं जिन्हें सरकारी इनाम इनायत फ़रमाया गया है कहाँ गए राजा को सजा देने वाले न्यायाधीश शाश्त्रीजी जेसे नेता जो देश की आन पर मर तो गए पर जलालत पोत कर मुहं नहीं दिखाया

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दुख, खेद, रोष...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

उफ्! आखिर इस देश का क्या होगा....सिर्फ एक न्यायपालिका ही बची थी, जिस पर कि कुछ उम्मीदें टिकी हुई थी.लेकिन....उफ्!