Thursday, June 17, 2010

गैस त्रासदी मामले में मूल दस्तावेजों से हेराफेरी


गैस त्रासदी मामले में लापरवाही से हुई मौत की धारा 304ए में एफआईआर कायम की गई। यूनियन कार्बाइड के पांच अधिकारियों को गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन दो दिन बाद जब उनमें से चार लोगों को अदालत में पेश कर रिमांड पर लिया गया तो पुलिस और अदालत दोनों के दस्तावेजों में 304ए के अलावा गैरइरादतन हत्या की धारा 304 और 278 व 429 भी थीं। सात दिसंबर को जब वारेन एंडरसन को दिए गए मुचलके पर भी इन्हीं चार धाराओं का जिक्र है।

एफआईआर बदली या धारा?:
विधि विशेषज्ञों के अनुसार रिमांड लेते समय केस डायरी और मूल एफआईआर भी अदालत में पेश की जाती हैं। अगर मूल एफआईआर धारा 304ए में दर्ज की गई तो रिमांड धारा 304 में कैसे ली गई? क्या केस डायरी में मामला गैरइरादतन हत्या का था? अगर यह मानवीय भूल थी तो एंडरसन के मुचलके में भी धारा 304 का जिक्र कैसे है? क्या मूल एफआईआर 304ए के बजाए गैरइरादतन हत्या की धारा 304 में लिखी गई थी जिसमें 10 साल तक की सजा का प्रावधान है? क्या मूल एफआईआर को बदल दिया गया? या फिर मूल एफआईआर में दर्ज एकमात्र धारा 304 को ही दो साल की सजा वाली धारा 304ए में बदल दिया गया?

क्या हुई खोजबीन?:
एक बार को मान लिया जाए कि एफआईआर तो 304ए में दर्ज हुई थी और जब पुलिस ने खोजबीन में पाया कि मामला तो गैरइरादतन हत्या का है तो इसमें अन्य गंभीर धाराएं भी जोड़ दी। लेकिन यदि ऐसा होता तो यह केस डायरी में लिखा होता और रिमांड आर्डर में भी। लेकिन यह कहीं भी नहीं लिखा गया कि इतनी गंभीर अपराध की धाराएं क्यों जोड़ी गईं और कब?

कैसे छोड़ा एंडरसन को?:
अगर मामला कमजोर किए जाने प्रयास था तो एंडरसन को कमजोर धारा के बजाए गैरइरादतन हत्या के मामले में क्यों गिरफ्तार किया गया? एक बार फिर मानवीय भूल? तो फिर गैरजमानती अपराध के मामले में उसे निजी मुचलके पर कैसे छोड़ दिया गया? जबकि उसके साथ ही गिरफ्तार केशुब महिन्द्रा और विजय गोखले को 8 दिन तक हिरासत में रहने के बाद हाईकोर्ट से जमानत लेनी पड़ी।

क्यों किया नजरअंदाज? :
भोपाल स्थित लॉ इंस्टीटच्यूट में कानून के जानकार आश्चर्य करते हैं कि पीड़ितों के ढेरों हमदर्द, इतने पुलिस अफसर, काबिल वकीलों और विद्वान न्यायाधीश इतनी कमजोरियों को 25 साल तक क्यों नजरअंदाज करते रहे?

पूर्व जिला न्यायाधीश रेणु शर्मा कहती हैं कि यदि यह सिद्ध हो जाए कि एफआईआर बदली गई तो जिम्मेदार के खिलाफ धारा 204 के तहत आपराधिक मामला बनता है। जांच में यदि मालूम चलता है कि ऐसा उच्च अफसरों के कहने पर किया गया तो उनके खिलाफ भी आपराधिक केस दर्ज होना चाहिए।

हुई है हेराफेरी?:
राज्य सरकार की विधि विशेषज्ञों की समिति के सदस्य शांतिलाल लोढ़ा मानते हैं कि इन दस्तावेजों में भारी हेराफेरी की गई हैं। उनका कहना है कि टाइपराइटर पर लिखी गई मूल एफआईआर तो गैरइरादतन हत्या की ही थी लेकिन बाद में इसमें हाथ से ए जोड़कर धारा 304ए का मामला बना दिया गया।

उनका कहना है कि न सिर्फ तत्कालीन एसएचओ बल्कि एसपी व सीबीआई के अफसरों के खिलाफ सरकारी दस्तावेजों से छेड़छाड़, अभियुक्त को बचाने, जांच को प्रभावित करने और कर्तव्य पूरा न करने की धाराएं 108, 119, 120, 201 ओर 222 के तहत केस दर्ज कर जांच आरंभ होनी चाहिए।

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साभार प्रस्तुति: कीर्ति गुप्ता का यह आलेख आज भोपाल दैनिक भास्कर के प्रथम पन्ने पर प्रकाशित हुआ है.

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